₹150.00
MRPGenre
Print Length
112 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9789380823683
Weight
255 Gram
‘आत्मा बेचारी कितनी गहराई में होती है
 हाड़-मांस-चर्म की पोशाक पहन,
 इंद्रियों का साम्राज्य बना
 सामने की दुनिया में खुद को
 प्रकट और नामित कर|’
 
 ‘याद रखो
 जो सुख का है वह सबका है
 जो दु:ख का है सिर्फ अपना है|’
 
 ‘वजह हो या न हो मेरी कविता में
 मेरे समय के और बाद के
 हर कवि की कविता के अणुओं और
 परमाणुओं में
 हो प्रचुर शक्ति|’
 
 ‘अपनी अंगिक असफलता समझने को
 कवि के पास नहीं होते शब्द|’
 ‘अभव के इस चकित महापर्व से ही तो
 जन्म लेते हैं हमारे अल्पायु संबंध|
 
 ‘इतनी गहरी यातना को
 क्या घाव की तरह
 नहीं पहना जा सकता
 रोजाना की पोशाक के नीचे?’
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